पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/४६

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जब पुण्य फल का क्षय हो जाता है तब वे उसी मार्ग से पृथ्वी पर लौट आते हैं। वे पहले आकाश, फिर वायु, फिर धूप, फिर कुहरा, तब बादल होते हैं और वहाँ से मेघ की बूँँद बन- कर पृथ्वी पर गिरते हैं। यहाँ वे अन्न होते हैं और उनको मनुष्य खाता है; और अंत को वे उसकी संतान के रूप में जन्म लेते हैं। जिनके कर्म बहुत ही अच्छे होते हैं, वे अच्छे कुल में जन्म लेते हैं; जिनके कर्म अच्छे नहीं होते वे नीच योनि में पशु आदि के शरीर धारण करते हैं। पशु लगातार इस लोक में आते जाते रहते हैं। यही कारण है कि पृथ्वी न तो भर जाती है और न खाली ही रहती है।

इससे हम अनेक विचार निकाल सकते हैं; और अंत को संभव है कि हम आगे चलकर इसे अच्छी तरह समझने योग्य हों कि इन सब बातों का आशय क्या है। अंतिम अंश यह कि कैसे लोग स्वर्ग से लौटते हैं, संभवतः पहले अंश से अधिक स्पष्ट है। पर इन सब का तात्पर्य्य यह जान पड़ता कि बिना ब्रह्म को जाने हुए कहीं शाश्वत सुख नहीं है। जिन लोगों को ब्रह्मज्ञान नहीं हुआ है और जो इस लोक में फल की कामना से शुभ कर्म संचय कर चुके हैं, वे जब मरते हैं तब इन मार्गों से होकर जाते हैं और अंत को स्वर्ग में पहुँचते हैं। वहाँ जैसे इस लोक में होता है, देवयोनि में जन्म लेते हैं और जब तक पुण्य कर्म का भोग रहता है, जीते हैं। इससे वेदांत का यह मौलिक सिद्धांत निकलता है कि सब जिनमें नाम-रूप