पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/८५

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अन्न का पहाड़ लगा दें तो उसमें से कौन सा बल निकलेगा? शक्ति उसी में थी; और इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि वह वहीं पर थी। ऐसे ही मनुष्य की आत्मा में अनंत बल है, चाहे उसे उसका ज्ञान हो वा न हो। उसकी अभिव्यक्ति केवल उसके जानने पर ही निर्भर है। वह अनंत महासत्व धीरे धीरे उद्बुद्ध हो रहा था, अपनी शक्ति को जान रहा था और उठ रहा था। ज्यों ज्यों उसे बोध होता जाता है, उसके वंधन को बेड़ियाँ ढीली पड़ती जाती हैं। और वह दिन आनेवाला ही है जब उसे अपने अतुल पराक्रम का बोध हो जायगा और वह महासत्व आप खड़ा हो जायगा। हमें इसके लिये प्रयत्न करना चाहिए कि उद्भव का वह अवसर शीघ्र आ जाय।



कर्म्म-वेदांत।
चौथा भाग।
(लंदन १७ नवंबर १८९६)

अब तक हम विश्वव्यापी के संबंध में कह रहे थे। आज हम आपके सामने यह कहना चाहते हैं कि एकदेशी और व्यापक के संबंध में वेदांत का विचार क्या है। हम देख चुके हैं कि द्वैतवाद में, जो वैदिक सिद्धांत का सब से पुराना रूप है, प्रत्येक प्राणी में एक एक अलग आत्मा मानी गई थी। इस विषय में कि “प्रत्येक प्राणी में अलग अलग आत्मा है” अनेक सिद्धांत थे। पर सबसे मुख्य विवाद प्राचीन बौद्धों और