पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/१०२

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कर्मयोग
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मैं दूसरे का भला कर सकता हूँ। यह अभिमान ही हमारी सभी शक्तियों का मूल है, और इन्हीं आसक्तियों के कारण हमें दुख झेलने पड़ते हैं। हमें अपने मन में भली-भाँति समझ लेना चाहिये कि यहाँ हमारा कोई आश्रित नहीं; एक भी भिक्षुक हमारी दया पर, एक भी प्राणी हमारी उदारता पर निर्भर नहीं; हमारे परोप- कार का कोई भी भूखा नहीं। प्रकृति सबकी देख-भाल करती है और जय हम न होंगे तब भी करती रहेगी। हमारे-तुम्हारे लिये संसार की गति नहीं रुकती ; जैसा कि पहले कह चुका हूँ, यह हमारे लिये एक सौभाग्य की बात है जो अपनी भलाई के लिये हम दूसरों का उपकार कर सकते हैं। जीवन का यह महान् पाठ है जिसे हमें सीखना है; जब हम उसे सीख लेंगे तो हम दुखी न रह सकेंगे। बिना भय हम समाज में यत्र, तत्र, सर्वत्र घूम-फिर सकेंगे। तुम्हारे स्त्रियाँ हों, स्त्रियों के पति हों ; चाकरों की सेना की सेना तुम्हारे पास हो, बड़े-बड़े राज्यों पर तुम्हें शासन करना हो; यदि तुम इस सिद्धांत को मान काम करो कि संसार तुम्हारे लिये नहीं तथा उसे तुम्हारी ऐसी आवश्यकता नहीं जो तुम्हारे बिना उसका काम न चले, तो उन सबसे तुम्हारी कोई हानि नहीं हो सकती। इसी वर्ष आपके कुछ मित्रों का देहावसान हुआ होगा। क्या उनकी प्रतीक्षा करने के लिये संसार का क्रम रुक गया है? क्या उसकी गति में किसी तरह की बाधा पड़ी है? नहीं, उसकी वही रफ्तार है। इसलिये इस क्षुद्र विचार को मन से झाड़कर निकाल दो कि तुम्हें संसार का उपकार करना है; संसार को तुम्हारी सहायता