स्मरण रखना चाहिये कि सब कर्म मन की शक्ति को जगाने के लिये है, जो वहाँ पहले से है,--आत्मोद्बोधन के लिये। प्रत्येक मनुष्य के भीतर शक्ति है, ज्ञान है; भिन्न कर्म उसे प्रतिफलित करने के लिये, उस महादानव को जाग्रत् अवस्था में लाने के लिये प्रहारस्वरूप हैं।
मनुष्य अनेक प्रकार की इच्छाओं से प्रेरित हो कर्म करता है। बिना इच्छा के कर्म नहीं हो सकता। कुछ मनुष्य कीर्ति के अभिलाषी होते हैं और वे कीर्ति के लिये काम करते हैं। कुछ धन पाना चाहते हैं और वे धन के लिये काम करते हैं। कोई शक्ति अर्जित करना चाहते हैं, वे शक्ति के लिये कार्य करते हैं। अन्य स्वर्ग जाना चाहते, वे तदर्थ प्रयत्न करते हैं। कोई मरने पर यहाँ अपना नाम छोड़ जाना चाहते हैं, जैसा कि चीन में होता है जहाँ बिना मरे किसी को उपाधि नहीं मिलती। हमारे यहाँ की प्रथा से वह अच्छी ही है। वहाँ जब कोई मनुष्य बहुत साधु-कर्म करता है तो वे उसके मृत पिता अथवा पितामह को उच्च उपाधि से विभूषित करते हैं। कुछ मनुष्य उसके लिये कर्म करते हैं। किन्हीं मुसल्मान सम्प्रदायों के अनुयायी अपने तमाम जीवन में मक़बरा तैयार कराने में व्यस्त रहते हैं, जिसमें मरने पर वे दफनाये जा सकें। मैं ऐसे सम्प्रदायों को जानता हूँ जहाँ बच्चा होते ही वे उसके मकबरे का प्रबन्ध करना प्रारम्भ कर देते हैं। उनके यहाँ मनुष्य का वह सबसे महत्त्वपूर्ण काम है और जिसका मक़बरा जितना ही अधिक विशाल और शोमन होता है, वह