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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/६१

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कर्मयोग
 

हैं।" इन व्यक्तियों की संवेदनाएँ उन्हीं की पोशाक और भाषा के दायरे में बन्द थीं। वही व्यक्ति जिसने मुझले वैसी पोशाक पहनने का कारण पूछा था और चूँकि वह उसकी सी न थी, इसीलिये वह मुझसे दुर्व्यवहार करना चाहता था, सम्भवत: एक सज्जन पुरुष था; सब तरह से वह एक अच्छा पिता और नागरिक भी हो सकता था: परन्तु दूसरे को अपने यहाँ से इतर पोशाक पहने देख उसके मन में सहानुभूति न रही। अजनवी आदमी साधा- रणत: नये देशों में जाकर बहुत बनाये जाते हैं, क्योंकि वह वहाँ पर अपनी समुचित रक्षा करना नहीं जानते। फलत: अपने देश को लौटते हुए वहाँ के लोगों की सभ्यता के अपने मन पर उल्टी छाप ले जाते हैं। व्यापारी, सैनिक, जहाजों के मल्लाह आदि दूसरे देशों में जाकर बड़े ही विचित्र ढंग के व्यवहार करते हैं। जिनका अपने देश में उन्हें स्वप्न में भी ध्यान न होगा। शायद इसी कारण से चीनी लोग अमेरिका और इंगलैंडवालों को विलायती शैतान कहकर पुकारते हैं।

इसलिए हमें इस बात का सदैव स्मरण रखना चाहिए कि दूसरों के कर्त्तव्य का हम उन्हीं के दृष्टिकोण से विचार करें, अन्य जातियों व देश-वासियों के रीति-रिवाजों को हम अपने माप-दंड से न ना। "मेरा आदर्श संसार कर आदर्श नहीं"- सीखने के लिये यह एक बड़ा सवक्क है। "मुझे संसार के अनुसार रहना है, न कि संसार को मेरे अनुसार।" इसलिये हम देखते हैं कि परिस्थितियों के साथ हमारे कर्त्तव्य में भी परिवर्तन होता