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( ६ ) दिक् अनन्त है। हमें इस बात का पूरा निश्चय है कि सौर जगत क्या अनेक सौर जगतो से परे, जहाँ तक न दूरबीन की पहुँच है और न हमारे अनुभव की, दिक् बराबर चला गया है। यह अनुभव की बात नही, अनंतता का अनुभव हमे बाहर से प्राप्त हो नहीं सकता।

काल कोई वाह्य वस्तु नहीं, चित् का ही स्वरूप है।

( १ )काल की भावना जगत से नही प्राप्त होती क्योकि प्रत्येक प्रत्यक्षानुभव मे काल की भावना पहले से मिली रहती है। प्रत्यक्षानुभव मे यह आवश्यक है कि संवेदन एक साथ हो या आगे पीछे। एक साथ या आगे पीछे होने का यह भाव कालसंबधी है।

( २ ) मान लीजिए कि जगत् की सारी गति, सारे व्यापार ( घड़ियो के चलने से लेकर पृथ्वी आदि ग्रहो के घूमने तक ) जिन से हम काल नापते है बंद हो जायँ, फिर भी काल बराबर चला चलेगा, एक क्षण के उपरांत दुसरा क्षण आता रहेगा। सब प्रकार के प्रत्यक्षानुभव के लुप्त होजाने पर भी काल की भावना बराबर बनी रहेगी।

( ३ ) कालसंबंधी निरूपण अपरिहार्य होते है, उनका अन्यथा संभव नहीं। जैसे किसी भविष्य काल तक रहने के लिये यह आवश्यक है कि वर्तमान काल और उस काल के बीच जितना काल है उतने मे रहा जाय, न कम में न अधिक मे। विगत क्षण का लौटना असंभव है। इस प्रकार के