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तब बहुतो ने अपने मज़हब की पौराणिक और स्थूल बातो को किनारे कर हेगल आदि के पूर्णचिद्वाद (Philosophy of the Absolute) या ब्रह्मवाद की ही शरण ली जिसकी आधिभोतिको ने हँसी उड़ाई क्योकि भाववाद मे उनके स्थूल ईश्वर, फरिश्तो, दोज़ख़ की आग, पितापुत्र आदि के लिये कहीं ठिकाना नहीं था। कैथलिक संप्रदाय के ईसाइयो ने शुद्ध वाह्यार्थवाद की अवलंबन किया। अधिकांश वैज्ञानिक अपने विषय के बाहर न जा कर संशयवादी रहे, और अब भी हैं। वे चैतन्य और उसकी सत्ता असत्ता के विषय मे कुछ कहना नही चाहते। डारविन, हक्सले, आदि विकाशवाद के प्रतिष्ठाता संशयवादी थे, अनीश्वरवादी नही।हर्बर्ट स्पेसर को भी एक प्रकार का संशयवादी ही कहना चाहिए। पर लार्ड केलविन, सर आलिवर लाज ऐसे कुछ परमप्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने लड़ाई में धर्माचार्यों का पूरा साथ दिया है। सर आलिवर लाज इंग्लैंड के प्रधान वैज्ञानिको मे से हैं। वे ईश्वर, परलोक, अमरत्व आदि के मंडन मे बराबर दत्तचित रहते हैं। सन् १९१३ मे बृटिश असोसिएशन के वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर सर आलिवर लाज ने 'अखंडत्व' पर जो व्याख्यान दिया था उसका कुछ अश नीचे दिया जाता है--

"परलोक आदि का पुराना झगड़ा इधर मुल्तवी है। जिस गढ़ मे परलोकवादी ने शरण ली है वह आक्रमण के लिये लोगो को आकर्षित नहीं करता। जिस कोने को दबा कर वह बैठा है उस पर उसका पूरा हक है। अब जो झगडा चल रहा है वह वैज्ञानिक दलो के बीच है जिसमे दार्शनिको को