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थी। प्राचीन, महात्माओ और कवियो का विश्व की आत्मा के विषय मे बहुत कुछ प्रवेश था। हमारी अनुसंधानप्रणाली ऐसी है जिससे किसी अखंड निर्विशेषता का पता नहीं लग सकता। यहाँ पर सापेक्षिकता का सिद्धान्त चलता है। इससे जब तक हमे व्याघात या विभेद नही मिलता तब तक हमें कोई परिज्ञान नही होता। हम लोग अपने चारो ओर की अन्तर्याप्त विभूति को देख सुन नही सकते; इतना ही कर सकते हैं कि कालरूपी करघे से निकल कर पूर्णता की ओर अनंत-गति से गमन करते हुए वस्त्र को भूतो से परे उस परमात्मा का परिधान समझे।"

जैसा पहले कहा जा चुका है लाज उन थोड़े से वैज्ञानिको मे से हैं जो संशयवाद से निकल कर ईश्वर परलोक आदि के मंडन में तत्पर रहते हैं। योरप और अमेरिका मे कुछ दिनो से परोक्षशक्ति के साधक भी खड़े हुए हैं जो अनेक प्रकार की सिद्धियाँ दिखा कर आत्मसत्ता का अस्तित्व प्रतिपादित करने का उद्योग करते हैं। ये मृत पुरुषो की आत्माओं से बात चीत करने, उनके द्वारा अलौकिक, घटनाओ के होने का हाल सुनाया करते है। इनकी ओर से कई पत्र-पत्रिकाएँ भी निकलती हैं। पर इनमे से अधिकतर छल और प्रवंचना का आश्रय लेते हैं इससे शिक्षितों और वैज्ञानिको की इनपर आस्था नही है। बहुतेरे अंतःकरण की असामान्य वृत्तियों या अवस्थाओं (जैसे, दोहरी चेतना आदि ) को अपने प्रयोग मे लाते हैं। पर इन युक्तियों से शिक्षितों का समाधान नहीं होता।

जैसा कि लाज ने कहा है परलोक, आत्मा आदि के