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कथाएँ और कल्पनाएँ ( ६ दिन मे सृष्टि की उत्पत्ति, आदम हौवा को जोड़ा, चौरासी लाख योनि इत्यादि ) हैं वे अब ढाल तलवार का काम नहीं दे सकतीं। अब जिन्हें मैदान मे जाना हो वे नाना विज्ञानों से तथ्य संग्रह करके सीधे उस सीमा पर जायँ जहाँ दो पक्ष अड़े हुए है--एक ओर आत्मवादी, दूसरी और अनात्मवादी; एक ओर जड़वादी, दूसरी ओर नित्य चैतन्यवादी। यदि चैतन्य की नित्य सत्ता सर्वमान्य हो गई तो फिर सब मतो की भावना का समर्थन हुआ समझिए क्योकि चैतन्य सर्वस्वरूप है। नाना भेदो मे अभेददृष्टि ही सच्ची तत्त्वदृष्टि है। इसी के द्वारा सत्य का अनुभव और मतमतांतर के रागद्वेष का परिहार हो सकता है।

इतिहास से प्रकट है कि आदि मे सब देशो के बीच प्रकृति की भिन्न भिन्न शक्तियो और विभूतियो या उनके भिन्न भिन्न अधीश्वरो की भावना हुई और बहुदेवोपासना प्रचलित हुई। कुछ देशों मे 'भेद मे अभेद' की तत्वदृष्टि का क्रमशः विकाश हुआ और सब देवो की समष्टि के रूप मे एक ईश्वर की प्रतिष्ठा हुई। जिन दो देशो मे सब से पूर्व इस प्रकार स्वाभाविक क्रम से एक ब्रह्म की भावना का विकाश हुआ वे भारत और बाबुल थे। भारतीय आर्यों के बीच एक ईश्वर या ब्रह्म की भावना का विकाश शुद्ध तत्वदृष्टि से हुआ। पहले प्रकृति की भिन्न भिन्न शक्तियो या विभूतियो की उपासना चली, फिर तत्त्वदृष्टि से उन सब का एक मे समाहार कर के ब्रह्मवाद की स्थापना हुई। संहिताकाल मे ही अग्नि, वायु, वरुण, इन्द्र आदि एक ही ब्रह्म के नाना रूप माने जा चुके थे-~