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घटक एक साधारण घटक से जिसे गर्भाडे कहते हैं उत्तरोत्तर विभागक्रम द्वारा उत्पन्न होते हैं। मनुष्य तथा और दूसरे रीढ़वाले जीवो की शरीररचना और योजना एक ही प्रकार की होती है। इन्हीं में स्तन्य था दूध पिलानेवाले जीव है जिनकी उत्पत्ति पीछे हुई है और जो अपनी उन विशेषताओ के कारण जो पीछे से उत्पन्न हुई सब से उन्नते और बढ़े चढ़े है।

कालिकर के सूक्ष्मदर्शक यंत्रो के अन्वेपण द्वारा हमारा मनुष्य और पशुशरीरसंबंधी ज्ञान बहुत बढ़ गया और हमे घटको और तंतुओ के विकाशक्रम का बहुत कुछ पता चल गया। इस प्रकार सिवोल्ड (१८४५) के उस सिद्धांत की पुष्टि हो गई कि सब से निम्न श्रेणी के कीटाणु एकघटक (जिसका शरीर एक घटक मात्र है ) जवि है।

हमारा शरीर, उसके ढाँचे का सारा व्योरा, यदि देखा जाय तो उसमे रीढ़वाले जीवो के सब लक्षण पाए जायँगे। जीवों के इस उन्नत वर्ग का निर्धारण पहले पहल लामार्क ने १८०१ मे किया। इसके अंतर्गत उसने रीढ़वाले जीवो को चार बड़े कुलो मे वॉटा-दूध पिलानेवाले, पक्षी, जलस्थलचारी, और मत्स्य। बिना रीढ़वाले कीड़े मकोडो के उसने दो विभाग किए। इसमें कोई संदेह नहीं कि सारे रीढ़वाले जीव हर एक बात मे परस्पर मिलते जुलते है। सब के शरीर के भीतर एक कडा ढॉचा


  • इन जीवो को पानी मे सॉस लेने के लिए गलफड़े ( जैसे मछलियों के ) और बाहर सॉस लेने के लिए फेफड़े दोनों होते है। इससे वे जल में भी और स्थल पर भी रह सकते है।