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प्रत्येक मनुष्य क्या समष्टिजीव मात्र के जीवन मे वह क्षण बड़े महत्त्व का है जिसमे उसका व्यक्तिगत अस्तित्त्व आरंभ होता है। यह वही क्षण है जिसमे उसके माता पिता के पुरुष और स्त्री घटक (रज कीटाणु और शुक्रकीटाणु ) परस्पर मिल कर एक घटक हो जाते है। इस प्रकार उत्पन्न नया घटक मूलघट कहलाता है जिसके उत्तरोत्तर विभागक्रम द्वारा ऊपर कही हुई दोनों कलाओ या झिल्लियो को बनानेवाले घटक उत्पन्न होते है। इसी मूलघट की स्थापना अर्थात् गर्भाधान के साथ ही व्यक्ति का अस्तित्व आरंभ होता है। गर्भाधान की इस प्रक्रिया से कई बातो का निरूपण होता है। पहली बात तो यह कि मनुष्य अपनी शारीरिक और मानसिक विशेषताएँ अपने मातापिता से प्राप्त करता है। दूसरी बात यह है कि जो नृतन व्यक्ति इसप्रकार उद्भूत होता है वह 'अमरत्व' का दाबा नही कर सकता है।

गर्भाधान के विधानो का ठीक ठीक व्योरा १८७५ मे प्राप्त हुआ जब कि हर्टविग ने अपने अनुसंधान का फल प्रकाशित किया। हर्टविग ने पता लगाया कि गर्भाधान मे सबसे पहली बात पुरुष और स्त्री घटक का (रज कीटाणु और वीर्यकीटाणु का) तथा उनकी गुठलियो का परस्पर मिल कर एक हो जाना है। गर्भाशय के भीतर बहुत से शुक्रकीटाणु गर्भकीटाणु को घेरते है, पर उनमे से केवल एक ही उसके भीतर गुठली तक घुसता है। घुसने पर दोनो की गुठलियाँ एक अद्भुत शक्ति द्वारा, जिसे घ्राण से मिलती जुलती एक प्रकार की रासायनिक प्रवृत्ति समझना चाहिए, एक दूसरे की