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केद्र की ओर सिमटा हुआ द्रव्य हमारा सूर्य हुआ। नीहारिका-वलय भी क्रमशः जम कर गोलों के रूप में हुए और केद्रस्थ-द्रव्य (सूर्य) से अलग हो कर उसके चारो ओर वेग से घूमने लगे। ये ही पृथ्वी, मंगल, बुध आदि ग्रह हुए। इनके जमने पर भी किनारे छल्ले रह गए जो क्रमशः जम कर इन ग्रहों के उपग्रह हुए––जैसा कि चंद्रमा हमारी पृथ्वी का है। जो छल्ला केद्रस्थ द्रव्य से जितनी दूरी पर था उससे जम कर बना हुआ पिंड उतनी ही दूरी पर से उसकी परिक्रमा करने लगा। जिस ग्रह के किनारे जितने छल्ले थे उसके उतने ही चंद्रमा हुए। जैसे, वृहस्पति की परिक्रमा करनेवाले आठ चंद्रमा हैं। जितने ग्रह हैं सब एक अवस्था में नही है। ग्रहपिड केद्रस्थ द्रव्य-समूह या सूर्य से छूट कर अलग होने पर ज्वलंत वायव्य अवस्था से जम कर अपरिमित ताप से युक्त ज्वलंत द्रव द्रव्य (जैसे, गरमी से पिघल कर पानी से भी पतला हो कर बहता हुआ लाल लोहा) के रूप में हुए। क्रमशः उनका ऊपरी तल ठंडा हो कर जमता गया और ठोस पपड़ी के रूप में होता गया। जो ग्रह जमते जमते सारा ठोस हो गया अर्थात् जिसकी सब गरमी निकल गई वह मुर्दा हो गया, उसमे, जल, वायु आदि कुछ नही रह गया। हमारा चद्रमा इसी अवस्था में है। पृथ्वी का ऊपरी तल तो ठोस पपड़ी के रूप में होगया है, पर बहुत गहराई तक नही। इसके भीतर वही ज्वलंत द्रव द्रव्य मौजूद है जो अपना अस्तित्व ज्वालामुखी के स्फोट और भूकंप आदि द्वारा प्रकट करता रहता है। वृहस्पति अभी ज्वलंत द्रव अवस्था से क्रमशः जमना आरंभ