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कर रहा है। मंगल पृथ्वी से भी अधिक जम कर ठोस हो चुका है। शनि और वृहस्पति दोनों अब तक वलयवेष्ठित है। ये सब बाते तो अच्छे अच्छे दूरवीक्षण-यंत्रो की सहायता से ही देखी जा सकती हैं। पर रगो के हिसाब से भी तारो और ग्रहो की अवस्था को मोटा अंदाज हो सकता है। जो ग्रह काला और कांतिहीन दिखाई दे उसे समझना चाहिए कि मर चुका है। फिर जब किसी और तारे से वह टक्कर खायगा तब उसमे नए तेज और नई शक्ति का संचार होगा और दूसरे लोकपिंड की सृष्टि होगी। ज्वलत नीलाभ ग्रहों को पूर्ण यौवनावस्था में समझना चाहिए। कुछ विशेषताओ से युक्त लाल तारों को समझना चाहिए कि वे क्रमशः नाश को प्राप्त हो रहे है। जो ज्वालाखंड जितना ही बड़ा या उसके ऊपरी तल के ठंढे होकर द्रवरूप मे आने और फिर और जमकर ठोस होने में उतना ही अधिक काल लगा है। अभी हमारा सूर्य वायव्य और द्रव अवस्था में ही है। भीतर तो वह जलती हुई वायु अर्थात् ज्वाला या लपट के रूप में है जिसके प्रचड ताप का अनुमान तक हम लोग नहीं कर सकते, पर उसके ऊपर का तल कुछ गरमी निकल जाने से जम कर वायव्य से ज्वलंत द्रव द्रव्य के रूप मे आगया है।

पृथ्वी का यह ठोस तल जिस पर हमलोग बसते हैं धीरे धीरे परत पर परत जमने से कई करोड़ वर्षों में बना है। इन परतो का जमना उस कल्प से आरंभ हुआ है जिस कल्प में पृथ्वी की पपड़ी इतनी ठंढी पड़ गई कि उसके ऊपर