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वैज्ञानिक ने अपने एक ग्रंथ मे कहा। मैने इस बात को विकाशसिद्धांत के अनुसार सिद्ध करने का प्रयत्न किया। पहले कहा जा चुका है कि कललरस एक दानेदार चिपचिपा पदार्थ है अर्थात् वह बहुत सी सूक्ष्म कणिकाओं के योग से संघटित है। ये कणिकाएँ कई आकार और प्रकार की होती है। इनमें जो विधान करनेवाली क्रियमाण मूल कणिकाएँ होती है उन्हें हम कललाणु कह सकते है। मैने अपनी एक पुस्तक मे निरूपित किया है कि 'अचेतन स्मृति' कललाणु की एक सामान्य और व्यापक वृत्ति है। क्रियावान् कललरस के इन मूलकललाणुओ मे ही पुनरुद्भूति होती है अर्थात् इन्ही मे स्मृतिशक्ति आदिरूप मे रहती है, निर्जीव द्रव्य के अणुओ मे नही। यही सजीव और निर्जीव सृष्टि मे अंतर है। वशपरंपरा ही को कललाणु की धारणा या स्मृति समझना चाहिए। एकघटक अणुजीवो की आदिम स्मृति उन कललाणुओ की अण्वात्मक स्मृति के योग से बनी है जिनके मेल से उनका एकटकात्मक शरीर बना है। एक अणुजीव की जो विशेपताएँ होती है वे उससे उत्पन्न दूसरे अणुजीवो मे रक्षित रहती हैं यही ऐसे जीवो की धारणा या स्मृति है। ऊपर कहा


गिरने, चलने और भड़कने की जो शक्ति है उसे निहित या अव्यक्त शक्ति कहते है। जब पत्थर गिरता है, घड़ी चलती है और बारूद भड़कती है तब वही शक्ति व्यक्त हो जाती है। ये दोनों प्रकार की शक्तियाँ एक दूसरे के रूप मे परिवर्तित होती रहती है, अर्थात् अव्यक्त से व्यक्त और व्यक्त से अव्यक्त होती रहती हैं।