पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१२१)

जाता है। पहली बात तो यह है कि ऐसे भ्रूण के पोषण का पूरा प्रबंध रहता है। यह पोषण अंडजों में तो उस उरदी के द्वारा होता है जो अंडों के भीतर रहती है। जरायुजों में जरायु के द्वारा माता के रक्त का जो संचार भ्रूण में होता है उसके द्वारा उसका पोषण पूर्ण रूप से होता है। अतः इनका भ्रूण धरती पर गिरने से पहले ही पूर्ण वृद्धि को प्राप्त रहता है। पर गर्भावस्था में भ्रूण की आत्मा सुषुप्तावस्था में रहती है। इसी प्रकार की सुषुप्ति इस कीड़ों के कायाकल्प-काल में रहती है जिनका रूपांतर होता है। तितलियाँ, मक्खियाँ, गुबरैले रेशम के कीड़े इत्यादि जब ढोले में फतिंगे के रूप में आने लगते हैं तब इसी प्रकार की सुषुप्त दशा में रहते हैं। इस सुषुप्तिकाल के बीच उनके तंतुओं और विविध अंगों का निर्माण होता है। ध्यान देने की बात यह है कि इस कायाकल्प-काल के पूर्व जब वे ढोले के रूप में रहते हैं तब उनमें इन्द्रियों और अंतःकरण के व्यापार अच्छी तरह दिखाई पड़ते हैं। फिर इस सुषुप्तावस्था के हट जाने पर जब इन कीड़ों का पूरा कायापलट हो जाता है और ये पूर्ण यौवनप्राप्त फतिंगों के रूप में उड़ने लगते हैं तब ये मनोव्यापार और भी उत्तम रूप में देखे जाते हैं।

मनुष्य के मनोव्यापार की भी जीवनकाल में कई अवस्थाएँ होती हैं। जिस प्रकार उसका शरीर शैशव, कुमार, पोंगंड, यौवन और जरा नामक चढ़ानी उतरानी की अवस्थाओं को क्रमशः प्राप्त होता है उसी प्रकार उसकी आत्मा या मनोव्यापार भी।