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या बरसाती पानी और नदियों के बहाव से ज़मीन के ऊपर की मिट्टी कट रही है। वे यह मान कर चलते हैं कि जिस गति से पृथ्वी पर परिवर्तन आज हो रहे हैं उसी गति से पहले भी बराबर होते आए हैं। पर यह निश्चित रूप से नही कहा जा सकता। संभव है बहुत से पारिवर्तन जिनके लिये उन्होने लाखो वर्ष रखे हैं विपल्व के रूप में बात की बात में हुए हों। भूगर्भवेत्ताओ के हिसाब से उस काल को बीते दस करोड़ वर्ष के लगभग हुए होगे जिसमें पहले पहल पानी के भीतर जमने वाली चट्टानों की तह पड़ी और मूल आदिम अणुजीवो का प्रादुर्भाव हुआ। भौतिक विज्ञानवाले सूर्य के ताप की उत्पत्ति के और गति के विचार से, तथा जिस हिसाब से पृवी का ऊपरी तल ठंढा होता गया है उसके विचार से और कम काल बताते हैं। एक दूसरी आधुनिक युक्ति सृष्टिकाल-निर्णय की यह है कि प्रतिवर्ष नदियो का जो जल समुद्र में जाता है उसके द्वारा समुद्रजल में नमक की वृद्धि किस हिसाब से होती है इसका परता बैठा कर आरंभकाल निकाले। इस हिसाब से भी नौ दस करोड़ वर्ष आते है।

भूगर्भवेत्ता पृथ्वी पर जीवोत्पत्ति से लेकर आज तक के काल को चार मुख्य कल्पो में बाँटते हैं---

प्रथम कल्प---पौधो में सिवार, क्राई, और पुष्पहीन पौधे। जतुओं मे स्पंज, मूँगे, शुक्तिवर्ग के कीड़े, कीटपतंग, ढालदार मछली जो रीढ़वाले जंतुओं मे सब से निम्न कोटि की है।

द्वितीय कल्प---पेड़ो मे खजूर, ताड़ इत्यादि जिनकी