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हाथी आदि की चेतना मे और मनुष्य की चेतना में केवल न्यूनाधिक का भेद है, कोई वस्तुभेद नही। इन पशुओ की चेतना और मनुष्य की चेतना मे उससे अधिक अंतर नही होता जितना अत्यंत असभ्य जंगली मनुष्य की चेतना और सभ्य जाति के दार्शनिको और तत्त्ववितकों की चेतना मे। अस्तु, चेतना मन की समुन्नत क्रिया ही का एक अग हैं और मस्तिष्क की बनावट पर निर्भर है।

सूक्ष्मदर्शक यंत्र आदि की सहायता से मस्तिष्क का जो वैज्ञानिक अन्वीक्षण किया गया उससे पता लगा कि चेतना का अधिष्ठान मस्तिष्क के भूरे मज्जापटल का एक विशेष भाग है। इस क्षेत्र मे बड़ा भारी काम फ्लेशजिक नामक एक जरमन वैज्ञानिक ने किया जिसने मस्तिष्क के भीतर चिंतन करने के अवयवो का पता लगाया। उसने सिद्ध किया कि मस्तिष्क के भूरे मञ्जाक्षेत्र में इंद्रियानुभव के केद्ररूप चार अधिष्ठान या भीतरी गोलक है जो इंद्रियसवेदनो को ग्रहण करते है-स्पर्शज्ञान का गोलक मस्तिष्क के खड़े लोथड़े मे घ्राण का सामने के लोथड़े में, दृष्टि का पिछले लोथड़े मे और श्रवण का कनपटी के लोथड़े मे रहता है। इन चारो भीतरी इद्रियगोलको के बीच में चार विचारगोलक है जिनके द्वारा भावो की योजना और विचार आदि जटिल मानसिक व्वापार होते हैं। ये ही गोलक चेतना और विचार के करण अर्थात् प्रधान अंतःकरण है। फ्लेशज़िग ने दिखलाया है कि मनुष्य के मस्तिष्क के इन गोलकों के कुछ अंशों मे विशेष प्रकार की रचनाएँ होती हैं