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इसका उलटा करते हैं---अर्थान् जंतुओं के समान अम्लजन का ग्रहण और अंगारक का विसर्जन करते हैं।

अब रहा संवेदन। संवेदन का सब से आदिम रूप है प्रतिक्रिया अर्थात् किसी पदार्थ के साथ संपर्क होते ही शरीर मे भी एक विशेष प्रकार का क्षोभ या क्रिया (गति) उत्पन्न होना। यह प्रतिक्रिया अचेतन व्यापार मानी जाती है, अर्थात् यह ज्ञानपूर्वक नहीं होती---जैसे आँख के पास किसी वस्तु के जाते ही पलको का आप से आप बंद हो जाना, दूसरी ओर ध्यान रहने पर पैर में कुछ छू जाते ही पैर को आप से आप हट या सिमट जाना इत्यादि। अत्यंत क्षुद्र कोटि के जीवो मे संवेदन इसी प्रतिक्रिया के रूप में ही माना जाता है। लजालु आदि पौधों में तो यह प्रतिक्रिया स्पष्ट देखी जाती है। और सब पौधों के भीतर भी इसी प्रकार की प्रतिक्रिया होती है पर वह सूक्ष्म होने के कारण दिखाई नही पड़ती। जिस प्रकार अणुजीव छू जाने पर संकुचित हो जाते हैं उसी प्रकार पौधो के घटक भी करते पाए जाते हैं। पौधो की जड़ो की नोके अत्यंत संवेदनग्राहिणी होती हैं। जहां उन पर संपर्क आदि द्वारा संवेदन हुआ कि वह एक घटक से दूसरे घटक में उसी प्रकार पहुँचता है जिस प्रकार क्षुद्र जंतुओं में। फूल पत्तों में सोने जागने की गति देखी ही जाती है जो प्रकाश के प्रभाव से होती है। प्रकाश का प्रभाव जिस प्रकार हमारे सवेदनविधान या विज्ञानमय कोश पर पड़ता है उसी प्रकार पौधो के संवेदन-विधान पर भी। कमल आदि बहुत से फूलों का दिन का प्रकाश पा कर खिलना और रात को बंद हो