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सोचना सिर्फ सोचना नहीं होता
सोचना
सिर्फ सोचना नहीं होता
सोचना
कि
प्रेयसी की आँख एक गहरी झील
और डूबते जाना
डूबते जाना और किनारा ढूंढ़ने की चाह ना रहना,
सोचना ये नहीं होता
माँ ने कहा चाय चीनी दाल नहीं है
जेब की अंतड़ियां बाहर निकाल कर बूरा झड़का देना
सोचना फिर भी कि चाय चीनी दाल तो लानी ही है कैसे भी,
सोचना यह भी नहीं होता
सोचना यह भी नहीं
कि
रोज रोज की घुटन से आजिज पत्नी से उलझ पड़ना
और फिर भीतर के इंसान से बात करना
कि क्यों लड़वाया तुमने
सोचना कुछ और है
कि क्यों कोई सदियों से
एक ही तल पर रेंगता है
और बिना सोचे मर जाता है
14 वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ