पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१२७

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दश अध्याय] (२) बाह्मण ग्रन्थों के महाभारत कालीन होने में स्वयं महाभारत भी साक्षी है , महाभारत प्रादि पर्व अध्याय ६४ में लिखा है-~- ब्रह्मणो ब्राह्मणानां च तथानुबहकाया, विन्यास वेदान् यस्मात् स तस्माद्व्यास इति स्मृतः ॥ १३० ॥ वेदानाध्यापयामास महाभारतपञ्चमान् , सुमन्तु जैमिनि पैलं शुकं चैव स्वमात्मजम् ॥१३१॥ प्रभुर्वरिष्टो वरदो वैशंपायनमेव च, संहितास्तैः पृथक्वेन भारतस्य प्रकाशिताः ॥१३२॥ अर्थात्-बेदव्यास के सुमन्तु, जैमिनि, वैशंपायन और पैल ये चार शिष्य थे । इन्हीं चारों को उनने वेदादि ग्रन्थ पढ़ाये । यह ब्यास पाराशर्य व्यास के अतिरिक्त अन्य नहीं थे, इसका प्रमाण भी महाभारत शान्तिपर्व अध्याय ३३५ में है- विविक्ते पर्वततरे पाराशर्यो महातपाः, वेदानध्यापयामास व्यासः शिष्यान् महातपाः ॥२६॥ सुमन्तु च महाभागं वैशंपायनमेव च, जैमिनि च महापा पैलं चापि तपस्विनम् ॥२७॥ वैशम्पायन को ही चरक कहते हैं, काशिकावृत्ति ४ । ३ । १०४ में लिखा है- वैशंपायनान्तेवासिनो नव" चरक इति वैशंपायनस्याख्या, तत् सन्बंधन सर्वे तइन्तेवासिनश्चरका इत्युच्यन्ते, पुनः महाभाष्य ४.३.१०४ पर पतन्जलि मुनि ने लिखा है, बैशंपायनान्तेवासी कः, कठान्तेवासी खाडायनः । वैशम्पायनान्तेवासी कलापी,