पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१२८

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[ वेद और उनका साहिल यह शिष्यपरम्परा निम्नलिखित प्रकार से सुस्पष्ट हो जावेगी। वैशंपायन ( घरक) 1 देखिये पूर्वोक (1) थालग्नि () कठ (६) कलापी (२) पलंग (३) कमन्न पवाडायन (४) ऋचाभ हरिद्रु नुम्बरु उल्क गलिन् (१)भारणि (६)ताण्ड्यक (७) श्यामायन इनमें से १.३ प्राच्य; - उदीच्य और ७-६ माध्यम है, महाभाष्य ४ । २ । १३८ और काशिकावृत्ति ४ । ३ । १०४ नामों मे से- (१) हारिद्रविण (२) तौम्युरविणः, (३) श्रारुणिना, ये तीनों महाभाष्य ४।२।१०४ में ब्राह्मण ग्रन्थ प्रवचनकर्मा कहे गये हैं, अत: यह निर्विवाद है कि साम्प्रतिक सब पाहाण प्रन्थ महाभारत काल में हो संगृहीत हुए । (३ ) याज्ञवल्क्य भी महाभारत कालीन ही है। महाभारत सभा- पर्व अध्याय ४ में लिखा है- बको दालभ्यः स्थूलशिरा. कृष्णद्वैपायन. शुकः सुमन्तु मिनिः पैलो ग्यासशिप्यास्तथा क्यम् ॥१७॥ तित्तिरियाज्ञवल्क्यश्न श्व ससुतो रोमहर्पणः ।