पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/९२

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चौथा अध्याय ] ! कवच और विना कवच वाले, मिलमिल वाले शत्रु ये मरे पड़े हैं थौर कुत्ते उन्हें खा रहे हैं अ० ११ । १० (१२) २४ धूम्रास्त्र-हे मरुत गण ! शत्रुओं की यह जो सेना हम पर चारों ओर से स्पर्धा करके बढ़ती चली जाती है, उसे प्रबल धूम्रास्त्र से छिन्न- भिन्न करडालो। ध०३।२।५ क्षय की मुर्य चिकित्सा–जिस तय से अंग शिथिल हो जाते हैं उस यक्ष्मा ( तपेदिक ) का तमाम बहर बो पाँव, जानु, श्रेणी, पेट, कमर, मस्तक, कपाल, हृदय, आदि अवयवों में रहता है, सूर्य की किरणों से नष्ट हो जाता है। अ० । ८ । (१३) हे क्षय रोग ! तु अपने भाई कफ और बहन खाँसी के साथ तथा भतीजी खाज के साथ किसी मरने वाले के पास जा । ढरे मत! तू मरेगा नहीं, तुझे दीर्घ जीवन देता हूँ। तेरे अंगों से ज्वर को निकाले डालता हूँ और क्षय रोग को तेरे अंगों से दूर करता हूँ। अ० ५। ३०३८ मुलहटो के गुण-यह मुलहटी मीठी है और मच्छरों का नाश करती है। तथा टेढ़ेपन की बढ़िया दवा है । रोहणी के गुण-रोहणी टूटी हड्डी को भर देती है। इससे मांस मना भी जुड़ जाते हैं। 1 थ० ४ । २२ यदि कटारी से अंग कट गया हो, या पत्थर से कुचल गया हो तो