पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/९३

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[ वैद और उनका साहित्य वह अंग एक दूसरे से ऐसा जुड़ जाता है जैसे उत्तम कारीगर रथ के अंगों को जोड़ देता है। ५.४।१२।७ पीरल-पीपल उन्माद और गहरे घाव की उत्तम दवा देवता लोगों का कथन है कि यह शौषध दीर्घ जीवन भी देती है। थ.६.१०६।१ पष्टिपर्णी -यह उग्र औषध रोग जन्नुओं का नाश करती है। श्यामा-यह वनस्पति शरीर के रज रूप को ठीक करती है । अति- श्वस कुष्ठ को नष्ट करती है। अ० २ । २४.४ दशमूल-दशमूल जडी संधिरोग को धाराम करती है। य. २ । ७.१ अपामार्ग-मूख प्यास कम होना, इन्द्रियों को सीखा, सन्तान ने होना थादि रोग अपामार्ग से थाराम होते हैं। कीटा--नो कीटाणु काली बगल वाले हैं, और काले रंग वाले हैं, काली भुजा और घर्षवाले है तथा सत्र वर्ण वाले हैं उनका नाश करो। ये जीवन नष्ट करनेवाले रोग जन्नु मीची नगह और अंधेरे में राते हैं। तेज पीड़ा देनेवाले, कंपाने वाले, तेज नहर चाले ये ऐसे मन्तु है जो आँख से दीवते भी हैं और नही मी दीखते हैं। म.६।२३।