पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/९४

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चौथा अध्याय ] दीखने और न दीखनेवाले, भूमि पर रेंगने वाले, कपोल में होनेवाले क्रिमियों का मैं नाश करता हूँ। अ० २।३१। २ थांतों में रहनेवाले, सिर के, पसलियों के कृमियों का नाश करता प्र०२१३२।४ तीन सिरवाले, तीन कूबड्वाले, चितकबरे हैं इन्हें नष्ट करना चाहिये। उदय होता और अस्त होता सूर्य क्रिमियों का नाश करता है। श्र० २ १३२ । १ तेरी आँख, नाक, कान, ठोड़ी मस्तिष्क और जिव्हा से, तथा गले की नालियों से, अस्थि संधि से, हंसली की हड्डियों से, रीढ़ से, हृदय से, क्लोम फेफड़े से, पित्ते से, पसलियों से, गुर्दी से, तिल्ली से, जिगर से, सब रोग बीजों को मैं निकालता हूँ। अ० २ । ३३ । १२1३ रङ्ग चिकित्सा-तेरा पीलापन (पान्डुरोग) तथा हृदय की जलन लाल रङ्ग में सूर्य की किरण छान कर शरीर पर डालने से हो सकती है। अ०१।२२ । १ दीर्घायु की प्राप्ति के लिये तुझे लाल रङ्गों से चारों ओर से तुझे ढोपता हूँ। श्र.११ २२ 1.२ लाल रग में सूर्य की किरण बान कर शरीर पर डालने तथा लालरश की गाय का दूध पीने से दीर्घायु प्राप्त होती है। भ०१।१२।३