निर्दयता के साथ मेरा मन दुःखी करें"॥
फ्लोडोआर्डो―"राजात्मजे! इसी लिये तो मेरी इच्छा वेनिस से भाग जाने की है कि जिसमें आपका मन न दुःखी हो, मेरे रहने से क्या आश्चर्य्य है कि किसी समय आपको फिर क्लेश हो, अतएव उत्तम है कि मैं यहाँ से कहीं निकल जाऊँ, जिसमें आप तो सुखसे रहैं"॥
रोजाबिला―"तो वास्तव में आप महाराज को छोड़ कर चले जाइयेगा जो तुमारो हृदय से सत्कार करते हैं और तुमारे साथ अत्यन्त प्रीति रखते हैं"॥
फ्लोडोआर्डो―"मैं उनकी प्रीतिका अत्यन्त सम्मान करता हूँ, परन्तु वह मेरे आनन्द के लिये पर्याप्त नहीं और यदि वह मुझे राज्य भी प्रदान करदें तो भी मेरे समीप कुछ नहीं है"॥
रोजाबिला―"तो श्रेय के लिये यह आवश्यक है कि यहाँ से आप चले जाइये॥
फ्लोडोआर्डो―"निस्सन्देह! बरन जितना मैंने वर्णन किया है उससे भी कुछ अधिक पैर पड़कर यांचना कर चुका" यह कह कर उसने रोजबिला का करकमल अपने हाथों में लेकर चुम्बन किया और फिर कहने लगा॥ "रोजाबिला मैंने तुमसे पैर पड़ कर निवेदन और प्रार्थना की और तुमने टकासा उत्तर दे दिया"॥
रोजाबिला―"तुम अद्भुत व्यक्ति हो! इतने शब्द रोजाबि- लाकी रसना से कठिनता से निकले,। फ्लोडोआर्डो ने उसे अपने समीप आकर्षण कर लिया और बहुत गिड़गिड़ा कर कहा "रोजाबिला"॥
रोजाबिला―"आप मुझसे क्या चाहते हैं"॥
फ्लोडोआर्डो―"मुझे अपनो सेवकाई में स्वीकार करो"॥