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वेनिस का बाँका
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प्रथम तो जहाँ तक कोलाहल और तुमुल शब्द हो सके हम लोग करें, इसलिये कि उपस्थितजन व्यतिव्यस्त हो जायँ, दूसरे हमारे शत्रु कानोंकान अभिज्ञ न होने पावें, कि कौन उनका मित्र है और कौन उनका शत्रु तीसरे अपने दल के अतिरिक्त और किसी को न ज्ञात हो कि इस कोलाहल और तुमुल शब्द का मूल प्रयोजन क्या है? और कौन लोग इसके प्रवर्तक और संयोजक हैं।

परोजी―'परमेश्वर की शपथ मैं तो अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि वह समय समीप है जब कि हम लोग अपने मनोरथ के प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करेंगे।'

फलीरी―'क्यों परोजी तुमने स्वेतसूत्र (फीते) जिन से हमलोग अपने सहायकों को पहचान सकेंगे सम्पूर्ण जनों को बाँट दिये।'

परोजी―'धन्य। कतिपय दिवस हुये, तुम्हें ज्ञात ही नहीं।'

कांटेरोइनो―'अच्छा तो अब अधिक बिवाद करने की आवश्यकता नहीं। बिषय उपस्थित है, केवल कार्य प्रारम्भ करने का बिलम्ब है, अब अपना अपना पानपात्र भरते जावो, मदपान प्रारंभ हो, क्योंकि फिर जब तक कि सम्पूर्ण कार्य न हो जावेगा काहेको समागम हो सकेगा।'

मिमो―'परन्तु मैं समझता हूँ कि इस विषय की पुनरपि पूर्ण बिबेचना और आलोचना कर लेनी चाहिये॥

काण्टेराइनो―'अजी रहने भी दो बिबेचना करलेनी चाहिये नहीं एक वह कर लेनी चाहिये, ऐसी बातों में विवेचना नहीं करते यह तो तात्कालिक कार्य है, इसे सोचने और बिचा- रने से क्या प्रयोजन। पहले तत्पर होकर एक बार बेनिस का प्रबंध उलट देना चाहिये, जिसमें कोई पहचान न सके कि स्वामी कौन है, और सेवक कौन है, फिर उस समय निस्सन्देह