दिया, अच्छा, बहुत उत्तम, जब तुम्हारा जी चाहेगा तो कदा चित मेरा जी न चाहे।
बालजर―राम! राम!! क्या यही समय व्यर्थ प्रलाप करने का है। परमेश्वर के लिये इन बातों को दूसरे समय के लिये रखो और इस समय सोचने दो कि अब हम लोगों को क्या आचरणीय और करणीय है।
पेट्राइनो―"निस्संदेह यह अवसर परिहास करने और हँसी की बातों के कहने को नहीं है।"
ष्ट्र्जा―"अबिलाइनो! तुम तो बड़े सुज्ञ और सुचतुर हो बतानो तो अब हम लोगों को क्या करना उचित है!"
अबिलाइनो―(कुछ कालोपरान्त) कुछ न करना चाहिये अथवा बहुत कुछ! हम लोगों को दो विषयों में से एक को अङ्गीकार करना चाहिये! अर्थात् यातो हम जहाँ हैं और जैसे हैं वैसे ही बने रहें अर्थात् किसी दुष्टात्मा को प्रसन्न करने के लिये,-जो हमको धन प्रदान करे और हमारी प्रशंसा करे,-हम सद्व्यक्तियों का शिरच्छेदन करें और एक न एक दिन शुली पर लट काये जाना, कोल्हू में पीड़ित किये जाना, पोतों पर श्रृङ्खलबद्ध होकर आजन्म कार्य्य करना, जीते जी अग्नि में दग्ध होना, फाँसी पाना अथवा करवाल द्वारा कालकवलित बनना, अभिप्राय यह कि जैसा कुछ शासकों के बिचार में आये हृदय में स्वीकार कर लें, और जी में ठान लें, अथवा-।"
टामिसो―हाँ अथवा?" कहो कहो?
अबिलाइनों-"अथवा जो कुछ धन हमारे पास विद्यमान है उसे परस्पर बिभाजित कर लें, इस नगर को परित्याग कर दूसरीं ठौर इससे उत्तम रीति से कालयापन करें और परमे- श्वर से अपराध क्षमापन के लिये प्रयत्न करें। हम लोगों के पास इस समय इतना धन है कि हमको इस बातकी चिन्ता न होगी