पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/८८

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वेनिस का बांका
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पर चढ़ा कर कभी बेनिस के बायें और कभी दहने मुड़ता हुआ मुझे इस रीति से ले चला कि मुझको तनिक ध्यान ने रहा कि मैं नगर की किस दिशा में हूँ। निदान एक स्थल पर पहुँच कर उसने मुझ से कह कि अब अपनी आँखों को वस्त्र द्वारा आच्छादित कर लो। अवश हो मुझे इस नियम को स्वीकार करना पड़ा। दो घड़ी के बाद उसने अपनी नौका एक स्थान पर ठहरा कर मुझे उतारा और कई गुप्तमार्गों से होता हुआ मुझे एक गृह के द्वार पर उसी भांति अच्छादित नेत्र से लेजाकर खड़ा किया। तब उसने कुण्डी खटखटाई और भीतर से किसी जनने कपाट खोल कर प्रथम अत्यन्त चातुर्य्य से मेरी बातों को श्रवण किया, फिर अपरों से अतिकाल पर्य्यन्त परामर्श करने के उपरांत मुझे घर के भीतर बुला लिया। वहाँ जाने पर मेरा नेत्राच्छादक पट खोल दिया गया और मैंने अपने को एक आयतन में पाया जहाँ चार मनुष्य असभ्य और एक युवती जिसने कदाचित कपाट खोला था उपस्थित थीं।

फलीरी―"ईश्वर की शपथ है कांटेराइनों तुम बड़े ढीठ हो"।

कांटेराइनो―"मैंने देखा कि समय व्यतीत करने का अव- सर नहीं है, इसलिये मैंने तत्काल स्वर्णमुद्राओं का तोड़ा अपने पार्श्वभाग से निकाल कर उनके सामने रख दिया, और उनको और बहुत कुछ देने की प्रतिज्ञा की। पश्चात् आपस में दिवस, समय, और संकेत जिनसे मेरी और उन लोगों की भेंट सुगमता से हुआ करे नियत कर लिये। उस समय मैंने उनसे केवल यही कामना प्रगट की कि मानफ्रोन, कुनारी और लोमेलाइनो जितना शीघ्र संभव हो ठिकाने लगाये जाय"।