इस पर सबने मिल कर कांटेराइनो की परम प्रशंसा की।
कांटेराइनों―"यहाँ तक तो सब बातें इच्छा के अनुसार हुईं और मेरे नूतन मित्रों में से एक व्यक्ति मुझे घरतक पहुँ- चाने के लिये साथ आने को भी तैयार हुआ कि अकस्मात् कुछ लोग आन पहुँचे"।
परोजी―"एँ?"।
मिमो―(घबरा कर) "परमेश्वर के लिये आगे कहो"।
कांटेराइनो―"ज्यों ही द्वार पर किसी के खटखटाने का शब्द ज्ञात हुआ वह स्त्री जो वहाँ विद्यमान थी समाचार जान- ने के लिये गई कि कौन है और तत्काल उन्मत्त युवती सदृश बकती हुई पलट आई कि "भागो! भागो!!
फलीरी―"फिर क्या हुआ?"
कांटेराइनो―उसके पीछे बहुत से पदातिगण और पुलीस के युवकजन आये और उनके साथ वह फ्लारेंस का रहनेवाला पुरुष था"।
यह सुन कर सब अकस्मात् बोल उठे "फ्लोडोआर्डो? फ्लोडोआर्डो?"।
कांटेराइनो―"हाँ, फ्लोडोआर्डो"।
फलीरी―"उसे क्यों कर वहाँ का अनुसन्धान लगा"।
परोजी―"हा हन्त! मैं वहाँ न हुआ"।
मिमो―"क्यों परोजी! अब तो तुमको विश्वास हुआ होगा कि फ्लोडोआर्डो बीर और साहसी है"।
फलीरी―"अभी चुप रहो शेष विवरण श्रवण करने दो"।
कांटेराइनो―"उस समय हमलोग पत्थर बन गये, कोई कर पदादि परिचालन तक नहीं कर सकता था। आने के साथ ही फ्लोडोआर्डो ने तर्जन पूर्वक कहा कि तुम लोग वर्तमान महीपति और इस राज्य की आज्ञा से शस्त्र अस्त्रादि रख दो