सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६४
वैदेही-वनवास

है पुनीत - आश्रम वाल्मीकि - महर्षि का।
पतित - पावनी सुरसरिता के कूल पर ।।
वास योग्य मिथिलेश सुता के है वही !
सब प्रकार वह है प्रशान्त है श्रेष्ठतर ॥५३॥

वे कुलपति हैं सदाचार - सर्वस्व हैं।
वहाँ बालिका - विद्यालय भी है विशद ॥
जिसमें सुरपुर जैसी हैं बहु - देवियाँ।
जिनका शिक्षण शारदा सदृश है वरद ॥५४॥

वहाँ ज्ञान के सब साधन उपलब्ध हैं।
सब विपयों के बहु विद्यालय हैं बने ।
दश - सहस्र वर - बटु विलसित वे हैं, वहाँ-
शान्ति वितान प्रकृति देवी के हैं तने ॥५५॥

अन्यस्थल मे जनक - सुता का भेजना।
संभव है वन जाये भय की कल्पना ।।
आपकी महत्ता को समझेगे न सब ।
शंका है, बढ़ जाये जनता - जल्पना ॥५६॥

गर्भवती हैं जनक - नन्दिनी इसलिये ।
उनका कुलपति के आश्रम मे भेजना ।।
सकल - प्रपंचो पचड़ों से होगा रहित ।
कही जायगी प्रथित - प्रथा - परिपालना ॥५७।।