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वैदेही-वनवास
अवलोकेगी अनुत्फुल्ल वह क्यों उसे ।
जिस मुख को विकसित विलोकती थी सदा ।।
देखेगी वह क्यों पति - जीवन का असुख ।
जो उत्सर्गी - कृत - जीवन थी सर्वदा ॥६॥
दोहा
सुन बाते गुरुदेव की, सुखित हुए श्रीराम ।
आज्ञा मानी ली विदा, सविनय किया प्रणाम ॥६४॥