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वैदेही-वनवास
कर याद दयानिधिता की।
भूगी बाते दुख की।
उर - तिमिर दूर कर देगी।
रति चन्द - विनिन्दक मुख की ॥५४॥
मैं नही बनूंगी व्यथिता ।
कर सुधि करुणामयता की।
मम हृदय न होगा विचलित ।
अवगति से सहृदयता की ॥५५।।
होगी न वृत्ति वह जिससे ।
खोऊँ प्रतीति जनता की ।
धृति - हीन न हूँगी समझे।
गति धर्म - धुरंधरता की ।।५६।।
कर भव - हित सच्चे जी से।
मुझमें निर्भयता होगी ।
जीवन - धन के जीवन में।
मेरी तन्मयता होगी ॥५७।।
दोहा
पति का सारा कथन सुन, कह बातें कथनीय ।
रामचन्द्र - मुख - चन्द्र की, वनीं चकोरी सीय ॥५८।।