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सप्तम सर्ग
बनी ठनी थी समस्त - नावे ।
विनोद - मन्ना सरयू - सरी थी।
प्रवाह में वीचि मध्य मोहक-
उमंग की मत्तता भरी थी॥१४॥
हरे - भरे तरु - समूह से हो।
समस्त उद्यान थे विलसते ।।
लसी लता से ललामता ले।
विकच-कुसुम-व्याज थे विहॅसते ॥१५॥
मनोज्ञ मोहक पवित्रतामय ।
बने विवुध के विधान से थे।
समस्त - देवायतन अधिकतर ।
स्वरित बने सामगान से थे ॥१६।।
प्रमोद से मत्त आज सब थे।
न पा सका कौन - कंठ पिकता ।।
सकल नगर मध्य व्यापिता थी।
सनोमयी मंजु मांगलिकता ॥१७॥
दिनेश अनुराग - राग में रंग।
नभाक से जगमगा रहे थे।
उमंग में भर बिहंग तरु पर।
बड़े - मधुर गीत गा रहे थे॥१८॥