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वैदेही-वनवास
मंद - गति से बहती नदियाँ।
मंजु - रस मिले सरसती थीं।
पा गये राका सी रजनी ।
वीचियाँ बहुत विलसती थीं ॥८॥
किसी कमनीय - मुकुर जैसा।
सरोवर विमल - सलिल वाला ॥
मोहता था स्वअंक में ले।
विधु - सहित मंजुल - उडु-साला ॥९॥
शरद - गौरव नभ - जल - थल में ।
आज मिलते थे ऑके से ।।
कीर्ति फैलाते थे हिल हिल ।
कास के फूल पताके से ॥१०॥
चतुष्पद
तपस्विनी - आश्रम समीप थी।
एक बड़ी रमणीय - बाटिका ।।
वह इस समय विपुल-विलसित थी।
मिले सिता की दिव्य साटिका ॥११॥
उसमें अनुपम फूल खिले थे।
मंद मंद जो मुसकाते थे।
बड़े भले - मावों से भर भर ।
भली रंगते दिखलाते थे॥१२।।