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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१८५

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दशम सर्ग

छोटे छोटे पौधे उसके।
थे चुप चाप खड़े छबि पाते ॥
हो कोमल - श्यामल - दल शोभित ।
रहे श्यामसुंदर कहलाते ।।१३।।

रंग विरंगी विविध लताये ।
ललित से ललित बन विलसित थीं।।
किसी कलित कर से लालित हो।
विकच - बालिका सी विकसित थी ॥१४॥

इसी वाटिका में निर्मित था।
एक मनोरम - शान्ति - निकेतन ।।
जो था सहज - विभूति - विभूपित ।
सात्विकता - शुचिता - अवलम्वन ।।१५।।

था इसके सामने सुशोभित ।
एक विशाल - दिव्य - देवालय ॥
जिसका ऊँचा - कलस इस समय ।
बना हुआ था कान्त - कान्तिमय ॥१६॥

शान्ति - निकेतन के आगे था।
एक सित-शिला विरचित - चत्वर ।।
उस पर बैठी जनक - नन्दिनी ।
देख रही थी दश्य • मनोहर ।।१७।।