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वैदेही-वनवास

वे धूम - पुंज से फैले।
थे दिगन्त में दिखलाते ॥
अंकस्थ - दामिनी दमके ।
थे प्रचुर - प्रभा फैलाते ॥९॥

सरिता सरोवरादिक में।
थे स्वर - लहरी उपजाते ॥
वे कभी गिरा बहु - बूंदें।
थे नाना - वाद्य बजाते ॥१०॥

पावस सा प्रिय - ऋतु पाकर ।
बन रही रसा थी सरसा ॥
जीवन प्रदान करता था।
वर - सुधा सुधाधर बरसा ॥११॥

थी दृष्टि जिधर फिर जाती।
हरियाली बहुत लुभाती ॥
नाचते मयूर दिखाते ।
अलि- अवली मिलती गाती ॥१२॥

थी घटा कभी घिर आती।
था कभी जल बरस जाता ॥
थे जलद कभी खुल जाते ।
रवि कभी था निकल आता ॥१३॥