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वैदेही-वनवास
मेरी आकुल - आँखों को।।
कबतक वह कलपायेगी।
उनको रट यही लगी है।
कब जनक - लली आयेगी ॥७९।।
आज्ञानुसार प्रभुवर के।
श्रीमती माण्डवी प्रतिदिन ॥
भगिनियों, दासियों को ले।
उन सब कामों को गिन गिन ॥८०॥
करती रहती हैं सादर।
थीं आप जिन्हें नित करती ॥
सच्चे जी से वे सारे।
दुखियों का दुख हैं हरती ॥८१॥
माताओं की सेवाये। .
है बड़े लगन से होती ।।
फिर भी उनकी ममता नित ।
है आपके लिये रोती ॥८२॥
सब हो पर कोई कैसे ।
भवदीय - हृदय पायेगा।
दिव - सुधा सुधाकर का ही।
वरतर - कर बरसायेगा ॥८३॥