पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८२
वैदेही-वनवास

मुझे ज्ञात यह बात हुई है आज ही।
हुआ लवण - वध हुए शत्रु - सूदन जयी ॥
द्वंद्व युद्ध कर उसको मारा उन्होंने ।
पाकर अनुपम - कीर्ति परम - गौरवमयी ॥८॥

आशा है अब पूर्ण - शान्ति हो जायगी।
शीघ्र दूर होवेगी वाधाये - अपर ॥
हो जायेगा जन - जन - जीवन बहु - सुखित ।
जायेगा अब घर घर में आनन्द भर ॥९॥

दसकंधर का प्रिय - संबंधी लवण था।
अल्प - सहायक - सहकारी उसके न थे॥
कई जनपदों में भी उसकी धाक थी।
बड़े सबल थे उसके प्रति - पालित जथे ॥१०॥

इसीलिये रघु - पुंगव ने रिपु - दमन को।
दी थी वर - वाहिनी वाहिनी - पति सहित ।
यथा काल हो जिससे दानव - दल - दलन ।
हित करते हो सके नही• भव का अहित ॥११॥

किन्तु उन्हें जन - रक्तपात वांछित न था।
हुआ इसलिये वध दुरन्त - दनुजात का ॥
आशा है अव अन्य उठायेगे न शिर ।
यथातथ्य हो गया शमन उत्पात का ॥१२॥