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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२३५

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वैदेही-वनवास

कभी बने जलविन्दु कभी मोती बने।
हुए ऑसुओं का आँखों से सामना ॥
अनुगृहीता हुई अति कृतज्ञा बनी।
सुने आपकी भावमयी शुभ कामना ॥६२॥

आप श्रीमती सत्यवती हैं सहृदया।
है कृपालुता आपकी प्रकृति में भरी॥
फिर भी देती धन्यवाद हूँ आपको।
है सद्वांछा आपकी परम - हित - करी ॥६३॥

दोहा


फैला आश्रम - ओक में परम - ललित - आलोक ।
मुनिवर उठे समण्डली सांग - क्रिया अवलोक ॥६४॥