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पंचदश सर्ग

उनके पद का करो अनुसरण पूत हो।
सच्चे - आत्मज बनो भुवन का भय हरो॥
रत्नाकर के बनो रत्न तुम लोग भी।
भले - भले भावों को अनुभव में भरो।।७४|

प्रकृति - पाठ को पठन करो शुचि - चित्त से।
पत्ते - पत्ते में है प्रिय - शिक्षा भरी ॥
सोचो समझो मनन करो खोलो नयन ।
जीवन - जल मे ठीक चलेगी कृति - तरी ॥७५।।

दोहा


देख धूप होते समझ मृदुल - बाल को फूल।
चली गई सीता ससुत तज सुर - सरिता कूल ॥७६।।