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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/३१३

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वैदेही-वनवास

और कहा अब आर्म्य पूरी शान्ति है।
प्रजा - पुंज है मुखित न हलचल है. कही ।।
सारे जनपद मुखरित है कल - कीर्ति से।
चिन्तित - चित की चिन्ताये जाती रही ॥६२॥

अवधपुरी मे आयोजन है, हो रहा -
अश्व - मेध का, कायों की है अधिकता।
इसीलिये में आज जा रहा हूँ वहाँ।
पूरा द्वादश - बत्सर मधुपुर में विता ॥६३।।

साम - नीति सत्र सुनीतियों की भित्ति है।
पर मुख - साध्य नहीं है उसकी साधना ।।
लोक - रंजिनी - नीति भी सुगम है नहीं।
है. गहना गतिमती लोक - आरावना ॥६४॥

भिन्न - भाव - रुचि - प्रकृति-भावना से भरित ।
विविध विचाराचार आदि से संकलित ॥
होती है जनता - ममता त्रिगुणात्मिका ।
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, से आकुलित ॥६५॥

उसका संचालन नियमन या सयमन ।
विविध - परिस्थिति देश, काल अवलोक कर ॥
करते रहना सदा सफलता के सहित ।
सुलभ है न प्राय. दुस्तर है अधिकतर ॥६६||