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षोडश सर्ग

यह दुस्तरता तब बनती है बहु - जटिल।
जव होता है दानवता का सामना ।
विफला बनती है जब दमन - प्रवृत्ति से।
लोकाराधन की कमनीया कामना ॥६७||

द्वादश - बत्सर बीत गये तो क्या हुआ।
रघुकुल - पुंगव - कीर्ति अधिक - उज्वल बनी।
राम - राज्य - गगनांगण में है आज दिन ।
चरम - शान्ति की तनी चारुतम - चॉदनी ॥६८।।

वाल्मीकाश्रम में, जो विद्या - केन्द्र है।
बारह - बत्सर तक रह जाना आपका ।।
सिद्ध हुआ उपकारक है भव के लिये।
शमन हुआ उससे पापीजन - पाप का ॥६९।।

जितने छात्र वहाँ की शिक्षा प्राप्त कर ।
जिस विभाग में भारत - भूतल के गये।
वहीं उन्होंने गाये वे गुण आपके ।
पूत - भाव जिनमे हैं भूरि भरे हुये ॥७०॥

तपस्विनी - आश्रम मे मधुपुर से कई -
कन्याये मैंने भेजी सद्वंशजा॥
कुछ दनुकुल की दुहिताये भी साथ थी।
जिनमें से थी एक लवण की अंगजा ॥७११

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