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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/६०

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वैदेही-वनवास

राजसी विभवों से मुँह मोड़।
स्वर्ग - दुर्लभ सुख का कर त्याग ।।
सर्व प्रिय सम्बन्धों को भूल ।
ग्रहण कर नाना विपय विराग ॥२८॥

गहन विपिनों में चौदह साल।
सदा छाया सम रह मम साथ ।।
साँसते सह खा फल दल मूल ।
कभी पी करके केवल पाथ ॥२९।।

दुग्ध फेनोपम अनुपम सेज ।
छोड़ मणि-मण्डित- कञ्चन - धाम ।
कुटी में रह सह नाना कष्ट ।
बिताये हैं किसने वसुयाम ॥३०॥

कमलिनी - सी जो है सुकुमार।
कुसुम कोमल है जिसका गात ॥
चटाई पर या भू पर पौढ़ ।
बिताई उसने है सब रात ॥३१॥

देख कर मेरे मुख की ओर ।
भूलते थे सब दुख के भाव ॥
मिल गये कहीं कंटकित पंथ। .
छिदे किसके पंकज से पॉव.॥३२॥