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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/७१

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तृतीय सर्ग

सुधा है वहाँ वरसती आज ।
जहाँ था वरस रहा अंगार ||
वहाँ है श्रुत स्वर्गीय निनाद ।
जहाँ था रोदन हाहाकार ।।१४।।

गौरवित है मानव समुदाय ।
गिरा का उर में हुए विकास ।।
शिवा से है शिवता की प्राप्ति ।
रमा का है घर घर में वास ॥१५॥

वन गये है पारस सब मेरु ।
उदधि करते है रत्न प्रदान ।।
प्रसव करती है वसुधा स्वर्ण ।
वन बने है नन्दन उद्यान ॥१६॥

सुखद - सुविधा से हो सम्पन्न ।
सरसता है सरिता का गात ।।
बना रहता है पावन वारि ।
ज करता है सावन उत्पात ॥१७॥

सदा रह हरे भरे तरु - वृन्द ।
सफल वन करते है सत्कार ॥
दिखाते हैं उत्कुल्ल प्रसून ।
वहन कर वहु सौरभ संभार ॥१८॥