पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/७२

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वैदेही-वनवास

लोग तने है सुख - सर्वग्न ।
विकच टनना है नित जलजात ।।
बार है. बने पर्व के बार।
गत है दीप - मालिका गत ॥१९।।

हुआ अज्ञान का तिमिर दर।
ज्ञान का फैला है आलोक॥
सुखद है सकल लोक को काल।
बना अवलोकनीय है ओक॥२०॥

शान्ति-मय-वातावरण विलोक।
रुचिर चर्चा है चारों ओर॥
कीर्त्ति-राका-रजनी को देख।
विपुल-पुलकित है लोक चकोर॥२१॥

किन्तु देखे राकेन्दु विकास।
सुखित कब हो पाता है कोक॥
फूटती है
दिव्यता दिनमणि की अवलोक

जगत जीवनप्रद पावस काल।
देख उठते हैं अर्क