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अवधपुरी के निकट मनोरम - भूमि मे।
एक दिव्य-तम-आश्रम था शुचिता-सदन ॥
बड़ी अलौकिक-शान्ति वहाँ थी राजती ।
दिखलाता था विपुल-विकच भवका बदन ॥१॥
प्रकृति वहाँ थी रुचिर दिखाती सर्वदा ।
शीतल - मंद - समीर सतत हो सोरभित ।।
वहता था बहु-ललित दिशाओं को बना।
यावन - सात्विक - सुखद-भाव से हो भरित ॥२॥