असुरराज शम्बर का आदमी है?"
शम्बर के नाम पर वह झुका, उसने स्वीकृतिसूचक सिर हिलाया।
सोम ने पूछा—"क्या तुम अपने प्राणों के मूल्य पर हमें चम्पा का मार्ग प्रदर्शन कर सकते हो?"
युवक ने स्वीकृति दी। परन्तु अत्यन्त भयभीत होकर घाटी की ओर हाथ उठाकर दो-तीन बार 'शम्बर' नाम का ज़ोर-ज़ोर से उच्चारण किया।
सोम ने कहा—"क्या उधर जाने में खतरा है?"
"हां।"
"चम्पा जाने का कोई दूसरा मार्ग है?"
"है, किन्तु बहुत लम्बा है।"
"कितना समय लगेगा?"
"एक सप्ताह।"
"और इस घाटी के मार्ग से?"
"एक दिन।"
सोम ने कुण्डनी से कहा—"लाचारी है! हमें खतरा उठाना ही पड़ेगा। हम एक सप्ताह तक रुक नहीं सकते।" उसने तरुण से कहा–
"हमें घाटी का मार्ग दिखाओ।"
तरुण असुर ने अत्यन्त भयमुद्रा दिखाकर उंगली गर्दन पर फेरी। सोम ने अपना खड्ग ऊंचा करके कहा—"चिन्ता मत करो।" असुर ने कहा—"खड्ग से आप बच नहीं सकेंगे।"
परन्तु सोम ने उधर ध्यान नहीं दिया। वे अश्व पर सवार हुए। कुण्डनी को भी सवार कराया और आगे-आगे युवक को करके घाटी की ओर अग्रसर हुए। एक बार उन्होंने तरुण असुर की छाती पर बर्छा रखकर कहा—"यदि दगा की तो मारे जाओगे।"
तरुण ने नेत्रों में करुण मुद्रा भरकर प्रणिपात किया, फिर स्वर्ण-करधनी का चिह्न छूकर प्राणान्त सेवा का वचन दिया।
आगे-आगे तरुण, पीछे अश्व पर सोम और कुण्डनी और उनके पीछे पांचों सैनिक द्रुत गति से आगे बढ़ने लगे। पर ज्यों-ज्यों घाटी के नीचे उतरते गए, उनका भय-आतंक बढ़ता ही गया। उन्हें एक अशुभ भावना का आभास होने लगा। सोम ने धीरे-से कहा—"कुण्डनी, क्या हम खतरे के मुंह में जा रहे हैं?"
"मालूम तो ऐसा ही होता है?"
"तब क्या लौट चलें?"
"अब सम्भव नहीं है।"
"क्या तुम भयभीत हो?"
"व्यर्थ है।"
और बातें नहीं हुईं। कुछ देर चुपचाप सब चलते रहे। घाटी में अन्धकार बढ़ता गया। तरुण ने एक झरना दिखाकर कहा—"अब आज इससे आगे जाना ठीक नहीं।"
सोम ने भी यही ठीक समझा। सब घोड़ों से उतर पड़े। घोड़े रास के सहारे बांध