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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१२८

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27. शम्बर असुर की नगरी में

अकस्मात् जैसे हृदय में धक्का खाकर सोमप्रभ की आंखें खुल गईं। उसने देखा, उसके हाथ-पांव कसकर बंधे हैं, और एक असुर तरुण स्वप्निल-सा कुण्डनी के हाथ-पांव बांध रहा है और वह बेसुध है। पांचों सैनिकों की भी वही दशा है, वे सब-के-सब बेसुध पड़े हैं। उसने इधर-उधर देखा, सामने कोई दस गज के अन्तर पर एक विशेष प्रकार की आग जल रही थी, जिसमें से नीली और बैंजनी रंग की लौ निकल रही थी। उसमें से विचित्र-सी गन्ध निकलकर हवा में फैल रही थी। उस हवा में श्वास लेने से सोमप्रभ को ऐसा मालूम हुआ, जैसे उसके शरीर से जीवन-शक्ति का लोप हो गया हो। उसने यह भी देखा कि उसके सम्पूर्ण शस्त्र उसके अंग पर ही हैं, पर वह उनका कोई उपयोग नहीं कर सकता। उसने ज़ोर से चिल्लाकर कुण्डनी को पुकारना चाहा, पर उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। इस बीच में तरुण असुर कुण्डनी को बांध चुका था। अकस्मात् उसके हृदय में एक ऐसी तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई कि वह चुपचाप उठकर एक ओर को चल दिया। एक बार पीछे फिरकर यह देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि कुण्डनी चुपचाप स्वप्निल व्यक्ति की भांति पीछे चली आ रही है। यही दशा उसके अश्वों और भटों की भी थी। उन्हें वही तरुण लिए जा रहा था। उसने अब भी बोलने, कुण्डनी से बातचीत करने और कहां जा रहा है, यह विचारने की चेष्टा की, पर सब बेकार। वह मन्त्रप्रेरित-सा आगे बढ़ा चला जा रहा था। और उसके पीछे कुण्डनी और उसके अश्व और भट चले आ रहे थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो कोई रस्सी से बांधकर उन्हें खींचे लिए जा रहा है।

पीछे वही तरुण था। वह रुक-रुककर कुछ शब्द कहता जाता था। कभी-कभी वन के बीच उपत्यका को प्रतिध्वनित करती हुई एक रोमांचकारी ध्वनि आती थी और उसी ध्वनि के उत्तर में वह तरुण असुर कोई अस्पष्ट शब्द उच्च स्वर से, मानो चीखकर, किन्तु बेबसी की हालत में उच्चारण कर रहा था।

पूर्व में सफेदी फैलने लगी और तारे धुंधले हो गए। ये यात्री चलते ही गए। अब किसी अदृश्य प्रेरणा से प्रेरित हो उन्होंने एक गहन गुफा में प्रवेश किया। गुफा में बिलकुल अन्धकार था। पर तरुण असुर ने क्षण-भर में वैसा ही नीला और बैंजनी रंग का प्रकाश उत्पन्न कर दिया। उसी के क्षीण प्रकाश में उन्होंने देखा, गुफा खूब लम्बी-चौड़ी और बड़ी है। वे उसमें भीतर-ही-भीतर चलते चले गए। बहुत देर चलने के बाद जब गुफा का दूसरा छोर आया, तो सोमप्रभ को ऐसा मालूम हुआ जैसे अकस्मात् गहरी नींद से जाग पड़ा हो। उसने देखा, दिन भली-भांति निकला है। सूर्य की मनोरम स्वर्ण-किरणें चारों ओर फैल रही हैं और उसकी आंखों के सामने एक खूब समथर हरा-भरा चौड़ा मैदान है, जो चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस मैदान में एक स्वच्छ, सुन्दर और कलापूर्ण अच्छाखासा गांव बसा हुआ है। घर सब गारे-पॉथर के हैं। उन पर गोल बांधकर छप्पर छाया गया है। बांसों को गाड़कर