पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१२९

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अहाते बनाए गए हैं। सड़कें खूब चौड़ी और साफ हैं, पशु पुष्ट और उनके गवाट कलापूर्ण ढंग से बने हैं। असुर तरुणियां सुर्मे के रंग की चमकती देह पर लाल मूंगे तथा हिमधवल मोतियों की माला धारण किए, चर्म के लहंगे पहने और कमर में स्वर्ण की करधनी तथा हाथों में स्वर्ण के मोटे-मोटे कड़े पहने कौतूहल से इन विवश बन्दियों का आगमन देख रही थीं। असुर बालक उन्हें क्रीड़ा और मनोरंजन की सामग्री समझ रहे थे। रूपसी कुण्डनी सम्पूर्ण असुर बालाओं और युवती जनों की स्पर्धा की वस्तु हो रही थी। वह लाल शाल कमर में बांधे तथा उत्तरीय वासक को वक्ष में लपेटे सर्पिणी के समान लहराते सघन केशों को चांदी के समान उज्ज्वल मस्तक पर धारण किए साक्षात् वन-देवी-सी प्रतीत हो रही थी। सोमप्रभ के निकट आकर उसने उसके कान में कहा—"सोम, जिस असुर पुरीकी चर्चा लोग कहानियों में करते थे, वह आज हम परम सौभाग्य से अपनी आंखों से देख रहे हैं। यह तो बड़ी मनोरम, शान्त और स्वच्छ छोटी-सी नगरी है। सोम, क्या तुम्हें यह देखकर आश्चर्य नहीं होता?"

"मुझे तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि कुण्डनी इस असुरपुरी में कैसे निर्भय और विनोदी भाव से प्रवेश कर रही है।"

"भय क्या है सोम?"

"यह तो अभी पता चल जाएगा, जब शम्बर आज रात को हमें देवता पर बलि चढ़ाएगा।"

"क्या उसकी ऐसी सामर्थ्य है सोम?"

"उसकी सामर्थ्य क्या अभी तुमने देखी ही नहीं? नगर में घुसने के पूर्व तक हम लोग कैसे मूढ़ बने-से माया के वशीभूत इस असुरपुरी में खिंचे चले आए!"

"सच ही तो, यहां हम आ कैसे गए? यह तो बड़े आश्चर्य की बात है!"

"उसी आसुरी माया के बल पर। शायद सूर्योदय होने पर वह माया नष्ट हो गई।"

"उंह, पर अब तो मैं पूर्ण सावधान हूं और जब तक मैं सावधान हूं, शत्रु से डर नहीं सकती।"

"ऐसी वीरांगना को संगिनी पाकर मैं कृतार्थ हुआ कुण्डनी। अफसोस यही है कि तुम्हें जीवनसंगिनी कदाचित् न बना सकूँ।"

कण्डनी ने विषादपूर्ण हंसी हंसकर कहा—"यदि आज ही रात को असुर हमें देवता पर बलि चढ़ा दे, तब तो तुम्हारी साध पूरी जो जाएगी। तुम मुझे जीवन संगिनी ही समझ लेना। परन्तु सोम, क्या तुम बहुत भयभीत हो?"

"क्या भय की कोई बात नहीं है कुण्डनी?"

"हम शत्रुपुरी में हैं और विवश हैं, यही तो? इससे साहस खो बैठे? तक्षशिला में तुमने इतना ही पुरुषार्थ संचय किया था सोम?"

सोम एकटक कुण्डनी के तेजपूर्ण मुख को ताकने लगा। उसने इसके मदभरे उनींदे नेत्रों में प्यासी चितवन फेंककर कहा—"यह कौन-सी सामर्थ्य तुम्हारे भीतर से बोल रही है कुण्डनी?"

कुण्डनी ने हंसकर कहा—"सोम, तुम भी तो एक समर्थ पुरुष हो!"

"यदि मेरे हाथ-पैर बन्धनमुक्त हों और मेरा खड्ग मेरे पास हो, तो मुझे इन असुरों