पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१३४

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था। गुफा में काफी ठण्ड थी, खूब नींद ले सकते थे।"

"इस विपत्ति में नींद किसे आ सकती थी कुण्डनी?"

"पर विपत्ति की सम्भावना तो रात्रि ही को थी न भोज के बाद!"

"और तब तक हमें पैर फैलाकर सोना चाहिए था?"

"निश्चय। उससे अब तुम स्वस्थ, ताज़ा और फुर्तीले हो जाते और भय का बुद्धिपूर्वक सामना करते।"

"तुम अद्भुत हो कुण्डनी! कदाचित् तुम्हें असुर का भय नहीं है।"

"असुर से भय करने ही को क्या कुण्डनी बनी हूं?"

"तुम क्या करना चाहती हो कुण्डनी, मुझसे कहो।"

"इसमें कहना क्या है! शम्बर या तो हमारे मैत्री-संदेश को स्वीकार करे, नहीं तो आज सब असुरों-सहित मरे।"

"उसे कौन मारेगा?"

"क्यों? कुण्डनी।"

सोम अवज्ञा की हंसी हंसा। पर तुरन्त ही गम्भीर होकर बोला—"मैं तुम्हारे रहस्य जानना नहीं चाहता। परन्तु तुम्हारी योजना क्या है, कुछ मुझे भी तो बताओ, ताकि सहायता कर सकूं।"

"सोम, तुम युवक हो और योद्धा हो! तथाच गुरुतर राजकार्य में नियुक्त हो। मैं तुम्हारी अपेक्षा अल्पवयस्का एवं स्त्री हूं। फिर भी सोम, इस समय तुम मुझ पर निर्भर रहो। शान्त, प्रत्युत्पन्नमति और तत्पर-तुमने जिसे अपघात समझा है, वह शत्रुनाश की तैयारी है सोम।"

"परन्तु किस प्रकार?"

"वह समय पर देखना। अभी मुझे बहुत काम है, तुम थोड़ा सो लो; फिर हमें विकट साहस प्रदर्शन करना होगा। मैं जानती हूं, असुर अर्धरात्रि से पूर्व भोजन नहीं करते।"

"तो तुम मुझे बिलकुल निष्क्रिय रहने को कहती हो?"

"कहा तो मैंने भाई, शान्त रहो, तत्पर रहो और प्रत्युत्पन्नमति रहो। फिर निष्क्रिय कैसे?"

"पर मेरे शस्त्र?"

"वे छिन गए हैं तो क्या हुआ? बुद्धि तो है!"

"कदाचित् है।" सोम खिन्न होकर एक भैंसे की खाल पर चुपचाप पड़ रहा। थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई। बहुत देर बाद जब कुण्डनी ने उसे जगाया तो उसने देखा, कई असुर योद्धा गुफा के द्वार पर खड़े हैं। अनेकानेक के हाथ में मशाल हैं और बहुतों के हाथ में विविध वाद्य हैं। एक असुर जो प्रौढ़ था, वक्ष पर स्वर्ण का एक ढाल बांधे, लम्बा भाला लिए सबसे आगे था।

मशाल के प्रकाश में आज सोम कुण्डनी का यह त्रिभुवनमोहन रूप देखकर अवाक् रह गया। उसकी सघन-श्याम केशराशि मनोहर ढंग से चांदी-जैसे उज्ज्वल मस्तक पर सुशोभित थी। उसने मांग में मोती गूंथे थे। लम्बी चोटी नागिन के समान चरण-चुम्बन कर रही थी। बिल्व-स्तनों को रक्त कौशेय से बांधकर उस पर उसने नीलमणि की कंचुकी पहनी